मोम का शहजादा
एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से कहा:- 'बीरबल, तुम्हारे धर्म ग्रंथों में यह लिखा है कि अपने भक्तों की पुकार सुन कर श्री कृष्ण पैदल ही
दौड़ पड़ते थे| वह न तो नौकर को साथ लेते थे और ना ही सवारी पर जाते थे |इसकी वजह समझ में नहीं आती क्या उनके यहां नौकर नहीं थे|
बीरबल बोले:- 'जहांपनाह, इसका उत्तर आपको समय आने पर दिया जाएगा| कुछ दिन बीत जाने के बाद एक दिन बीरबल ने एक नौकर को
जो बादशाह के पोते को टहलाया करता था, एक मोम की बनी हुई चीज जिसकी शक्ल बादशाह के पोते से मिलती थी, नौकर को दी|
इसे नौकर को देखकर उसे अच्छी तरह समझा दिया कि जिस तरह रोज बादशाह के पोते को लेकर उनके सामने जाता है| ठीक उसी तरह आज
भी इस मूर्ति को लेकर जाना, लेकिन जल कुंड के पास फिसल जाने का बहाना करके गिर पड़ना और इस तरह से गिरना कि तू तो जमीन पर गिरे लेकिन यह मूर्ति पानी में गिर जाए|
यदि तुम इस काम में सफल हुए तो तुम्हें अच्छा इनाम दिया जाएगा| लालच के कारण नौकर ने ऐसा ही किया| जैसे ही वह नौकर जल कुंड के
पास पहुंचा, वैसे ही वह मूर्ति पानी में गिर गई और वह नौकर नीचे फिसल कर गिर गया| बादशाह यह सब देख कर तुरंत ही कुंड में कूद पड़े|
जब बादशाह कुंड से मोम को लेकर पानी से बाहर आए तो उनका भ्रम टूटा|
बीरबल उस समय वहीं पर मौजूद थे| उन्होंने कहा:- 'जहांपनाह, आपके पास इतने नौकर थे फिर भी आप अपने पोते को निकालने के लिए
अकेले ही कुंड में कूद पड़े'|
बीरबल ने फिर कहा कि क्या अभी भी आपकी आंखें नहीं खुली, हुजूर| जैसे आपको अपना पोता प्यारा था उसी तरह श्री कृष्ण को अपने भक्त
प्यारे थे| इसीलिए वह अपने भक्तों की पुकार सुनकर पैदल ही दौड़ पड़ते थे| बीरबल की यह बात सुनकर बादशाह की आंखें खुल गई|
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