जैसे को तैसा

क बार तेनालीराम का कुत्ता बीमार पड़ गया और बीमारी के कारण एक दिन चल बसा| कुत्ते के मर जाने के बाद तेनालीराम स्वयं बीमार पड़ गया| उसे बहुत तेज बुखार ने घेर लिया|


एक पंडित जी उसके घर पर आकर बोले:-” तुम्हें अपने पाप का प्रायश्चित करना चाहिए|हो सकता है तुम्हारे पापों की वजह से तुम्हें इस रोग से छुटकारा ना मिले|” तेनालीराम ने पूछा:-” मुझे क्या करना होगा?”



पंडित जी ने उत्तर दिया:-” तुम्हारे लिए पूजा पाठ करना पड़ेगा तथा इसमें तुम्हें 100 स्वर्ण मुद्राएं खर्च करनी पड़ेगी|”


तेनालीराम बोला:-” लेकिन पंडित जी इतनी सारी स्वर्ण मुद्राएं मैं कहां से लाऊंगा?”


पंडित जी बोले:-” तुम्हारे पास जो घोड़ा है उसे बेच देना तथा उससे जो रकम तुम्हें मिलेगी वह मुझे दान में दे देना|”


तेनालीराम ने पंडित जी की बात स्वीकार कर ली| पंडित जी ने पूजा पाठ करके तेनालीराम को शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की| कुछ ही दिनों में तेनालीराम वैध जी की दवाइयों से ठीक हो गया|


तेनालीराम पंडित जी को साथ लेकर बाजार में गया| उसने एक हाथ से घोड़े की लगाम पकड़ रखी थी और दूसरे हाथ से एक टोकरी|
बाजार में पहुंचकर तेनालीराम ने जोर से आवाज लगाई:-” यह घोड़ा बिकाऊ है| घोड़े का मूल्य एक आना है तथा इसके साथ एक टोकरी भी है, जिसका मूल्य 100 स्वर्ण मुद्राएं हैं| जो सज्जन लेना चाहे उसे घोड़ा एवं टोकरी दोनों ही लेनी पड़ेगी|”


एक व्यक्ति ने दोनों चीजें खरीद ली तथा तेनालीराम को एक आना एवं 100 स्वर्ण मुद्राएं देकर घोड़ा एवं टोकरी को खरीद लिया| तेनालीराम ने पंडित जी को एक आना दे दिया तथा 100 स्वर्ण मुद्राएं स्वयं रख ली|


पंडित जी ने कहा:-” तेनालीराम! तुम मेरे साथ अन्याय कर रहे हो| तुम मुझे 100 स्वर्ण मुद्राएं देने की बजाय 1 आना दे रहे हो|”


तेनालीराम बोला:-” पंडित जी! आपने ही कहा था कि जो तुम्हारे पास घोड़ा है, उसे बेच कर जो रकम मिलेगी वह मुझे दान में दे देना| घोड़े की कीमत एक आना थी और टोकरी की कीमत 100 स्वर्ण मुद्राएं|


 

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